Category: पहला कदम
पुद्गल का जीव पर उपकार
पुद्गल जीव पर तभी बड़ा उपकार करेगा जब उसमें उपकारी-गुणों की स्थापना की गयी हो जैसे मूर्ति में भगवान । श्री लालमणी भाई – चिंतन
उद्धार
पंचमकाल समुद्र है, हुंडावसर्पिणी उसमें तूफान, संयम का दीपक जलाये रखना, देव/शास्त्र/गुरु की नाव का सहारा है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
करुणा / मोह
करुणा आत्मा का स्वभाव है, इसका कर्मों से कोई सम्बंध नहीं; जबकि मोह, कर्म जनित होते हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
गुणग्राहिता
एक इन्द्रिय जल से भी वह गुण ग्रहण कर सकते हैं जो हममें भी नहीं हैं । जल भगवान के शरीर को स्पर्श करके गंधोदक
देव-आयु-बंध
देव-आयु-बंध, शुभ-लेश्या के साथ ही होता है । मुनि श्री महासागर जी
दिव्यध्वनि
दिव्यध्वनि तो भगवान की, फिर उसे देवकृत अतिशय क्यों कहा ? क्योंकि देवता दिव्यध्वनि को 12 कोठों में सुचारू रूप से सुनाने में सहायक होते
प्रासुक
छेदन-भेदन से भी प्रासुक होता है, जैसे सोंफ आदि को पीसने से/छिलका हटने की अपेक्षा प्रासुक कहा; लेकिन फलों के लिये ये विधि नहीं लगेगी
उपसर्ग
उपसर्ग केवलज्ञान से पहले 12वें गुणस्थान तक हो सकते हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
विषय/कषाय
विषय बाहरी, कषाय अंतरंग । इनके प्रति प्रतिबद्ध हैं, इसीलिये संसार से प्रतिबद्ध हैं । विषय से कषाय और कषाय से विषय होते हैं ।
अचेतन
संगीतादि को सीखना चेतन मन/दिमाग से होता है । अभ्यास हो जाने पर अचेतन मन सक्रिय हो जाता है, तभी सुन्दर सुन्दर स्वर-लहरी निकलती है,
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