Category: पहला कदम
ध्रुव / अध्रुव
ध्रुव भाव आते ही, अध्रुव पदार्थ भी आने लगते हैं क्योंकि ध्रुव भाव में साता रहती है । जहाँ साता/संवेग रहती है वहाँ वैभव आता
उद्वेग / संवेग
इन दोनों में से हमें क्या पसंद है ? उद्वेग – हम कुछ हैं, बाह्य Achievement/आत्मा से दूर ले जाता है । संवेग – “मैं”
कर्म
कर्म सम्यग्दृष्टि के “हो जाते हैं”, मिथ्यादृष्टि “करते हैं” । मुनि श्री सुधासागर जी
धर्म
धर्म दर्द देता है, यदि सुख मिल रहा है तो वह धर्म है ही नहीं, यही कारण है कि प्राय: लोगों के जीवन में धर्म
अवधि/मन:पर्यय ज्ञान
अवधि-ज्ञान की सीमा ज्यादा, मन:पर्यय ज्ञान की सीमा कम क्यों ? लोहे की तराजू क्विंटल में नापती है, सोने/हीरे की ग्रामों में । मन:पर्यय, महत्वपूर्ण
सूतक
रावण की चिता शांत भी नहीं हुई थी कि उनकी सारी (16 हजार) रानियों ने दीक्षा ले ली । धर्म करने में सूतक बाधक नहीं
नृत्यकारणी देवियाँ
देवियों की नृत्यकारणी सैनायें भी होती हैं । श्री उत्तरपुराण – पेज 402 (पं. रतनलाल बैनाडा जी)
ग्रंथ
आध्यात्म : जो अधिकृत हों, आत्मा के विषय में । सिद्धांत : जो अंत में सिद्धों की ओर ले जायें (पहले संसार घुमाकर) जैसे जीवकांड/कर्मकांड
श्रमण
स्व-मन = जिसका मन स्वयं का हो, (जिसे अपने मन पर नियंत्रण हो) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अध्यवसाय
संकल्प विकल्पों में लगा हुआ ज्ञान कहलाता है । इससे कर्मबंध होता है । किसी ने आपको गधा कहा, बस संकल्प-विकल्प शुरु, पर जिनवाणी माँ
Recent Comments