Category: पहला कदम
वैयावृत्ति
गृहस्थ तप नहीं कर पाता, सो उसे तपस्वियों की वैयावृत्ति के लिये कहा। सूर्य के प्रकाश से अग्नि नहीं, बीच में Magnifying glass से कार्य
धर्म / मोक्षमार्ग
दो प्रकार का – 1. व्यवहार रूप – इन्द्रियों/शरीर से,उनकी सहायता से; लेकिन आत्मा के लिये । 2. निश्चय रूप – ध्यान/स्वानुभव – 7वें गुणस्थान
उपादेय
संसार में रहो पर एक उपादेय बना लो । उपादेय = उप (करीब से) + आदेय (प्राप्त/ग्रहण करने योग्य) । शुद्ध आत्मा को उपादेय बनाओ
गुरु
शिथलाचारी साधु भी हमसे तो अच्छे हैं । हम अपने माता-पिता के भी तो पैर छूते हैं ! माता-पिता को उनके स्वरूप के अनुसार पैर
स्वर्ग से स्वर्ग
स्वर्ग में पुण्य ख़र्च कर लेते हैं; इसलिये स्वर्ग से पुनः स्वर्ग नहीं जाते। प्रश्न – मुनि बनकर मोक्ष जाने के पुण्य कैसे बच जाते
प्रभु पतित पावन
प्रभु! पतित से पावन बने हो; इसलिये पतितों को पावन करते हो! (“पतित-पावन” विशेषण सिर्फ भगवान के लिये लगाया जा सकता है) आपका भूत मेरे
उपगूहन / स्थितिकरण
क्या ये दोनों एक साथ हो सकते हैं ? बेटे ने चोरी की, पड़ौसी ने शिकायत की, पिता ने स्वीकारा नहीं – उपगूहन । घर
सर्वज्ञता
बिना ज्ञेय में प्रवेश किये, सर्वज्ञ ही जानते हैं, निर्लिप्तता में जो आनंद/पूर्णता, वह लिप्तता में कहाँ ! ममता से शून्यता, उसे जो समता से
श्रुतकेवली
श्रुतकेवली, 6 से 12 गुणस्थानवर्ती होते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
साधक
अपने मैले कपड़े को धोने वाला जब कपड़े पर पानी डालता है, तब मैल और उजागर होता जाता है। आदिनाथ भगवान गृहस्थ अवस्था में नित्य
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