Category: पहला कदम
भाव
क्षयोपशमिक-भाव… जो ज्ञान उत्पन्न हो गया है तथा जो उत्पन्न नहीं हुआ हो, उनके सद्भाव से उत्पन्न भाव। औदयिक–भाव…. कषाय, शरीरादि से जुड़े रहते हैं।
साधना
हिमालय पर चढ़ने के लिये बहुत साधना करते हैं, जान तक दे देते हैं। पाते क्या हैं ? कुछ मिनटों का सुख। मोक्ष के अनंत
विग्रह गति
कार्मण काययोग से विग्रह गति में कर्मबंध/ उदय, क्षयोपशम आदि बने रहते हैं। कर्मों के साथ कर्मबंध के जो अपने ही प्रत्यय पड़े हुए हैं
सल्लेखना
श्री कर्मानंद जी (जैनेतर) जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे पर सल्लेखना को आत्मघात मानते थे। थोड़े दिन बाद उन्हें बहुमूत्र रोग हो गया। अशुद्धि
गुरुपास्ति
मुनियों को न मानने वाले, गुरुपास्ति आवश्यक वैसे ही करते हैं जैसे बीरबल खिचड़ी पकाया करते थे। उनकी खिचड़ी कभी पक पायेगी ? मुनि श्री
लब्धियाँ
श्री सम्यक्त्वसार शतक (आचार्य श्री विद्यासागर जी के गुरु आचार्य श्री ज्ञानसागर जी रचित) में उदाहरण दिया है… मोक्ष जाने वाली ट्रेन में → 1.पटरी…
गणधर के शिष्य
गणधर के शिष्य “गुणधर” (गुणों के धारक)। उत्तम → सम्यक्चारित्र के धारक। मध्यम → सम्यग्दर्शन के धारक। जघन्य → सिर्फ नाम के धारक जैसे आम
भाव
किसी के अधिक से अधिक कितने भाव रह सकते हैं ? सामान्यत: 4 ( औदायिक, पारिणामिक, क्षयोपशमिक, औपशमिक या क्षायिक), लेकिन क्षायिक सम्यग्दृष्टि जब उपशम
आत्मा
निश्चय से आत्मा के अनंत/ अनेक गुणों को जानना, तथा व्यवहार से उन गुणों को जीवन में उतारना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आत्मा पर विश्वास
आत्मा पर विश्वास सिर्फ यह नहीं कि मैं आत्मा हूँ/ आत्मा होती है, पर यह भी कि आत्मा अजर अमर है। इसका परिणाम होगा कि
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