Category: पहला कदम
मनुष्य / देव
देवों से मनुष्य को बेहतर क्यों कहा क्योंकि वह संयम धारण करके अपना आत्मकल्याण कर सकता है। पर जो मनुष्य संयम धारण नहीं कर रहे
कषाय / वैराग्य
कषायों की मंदी के समय, वैराग्य के शेयर खरीद लेने चाहिये। वैराग्य के शेयर कभी डूबते नहीं हैं। आर्यिका पूर्णमति माताजी
साधक / बाधक
पूरे साधक कारण मारीच के पास थे पर बाधक कारण (पाप कर्म तथा वर्तमान का घमंड) न हटने की वजह से कोड़ा-कोड़ी सागर तक भटकता
हेय / उपादेय
उपादेय दिखता नहीं है, इसलिये इसे पाने के लिये हेय को छोड़ो, जो बचा रहेगा वह उपादेय होगा। आचार्य श्री विद्यासागर जी
विशेष
केवलज्ञान होने पर भी सामान्य रहता है। ऐसे ही ऋद्धिधारी सहज होते हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सम्यग्दर्शन का कारण
सम्यग्दर्शन के कारणों में एक कारण मिथ्यात्व भी हो सकता है, यदि उसे संसार का कारण मानें तो। आचार्य श्री विद्यासागर जी
संवेदनशीलता
क्षायिक सम्यग्दृष्टि वज्र जैसा कठोर होता है पर उसमें से भी पानी निकलने लगता है। जैसे भरत चक्रवर्ती आदिनाथ भगवान के मोक्ष जाने पर रो
अभिनिबोध
“अभिनिबोध” मतिज्ञान का पर्यायवाची है। इसका प्रयोग सम्यग्दर्शन के साथ ही होता है। अभि = अभि (मुख) नि = नियत (विषय अपनी अपनी इंद्रियों का)
व्यंजन
व्यंजन के 2 अर्थ हैं – 1. अव्यक्त… व्यंजनावग्रह में आता है। 2. व्यक्त…. व्यंजन पर्याय में आता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 306/307)
सल्लेखना
मुनि श्री वैराग्यसागर जी सन् 1984 में आहार जी में 4 माह से सल्लेखना करते हुये जल पर आ गये थे। अगले दिन जल लेते
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