Category: पहला कदम

ॐ/ओंकार

ॐ शब्द है, ओंकार, ॐ की ध्वनि; अर्थ भेद नहीं। भगवान की ओंकार ध्वनि होती है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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वाच्य-वाचक सम्बन्ध

जो पदार्थ जिस शब्द के द्वारा कहा जाता है, उस शब्द के द्वारा पदार्थ से सम्बन्ध जुड़ गया जैसे जीव शब्द सुनते ही आत्मा की

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क्षयोपशम

क्षयोपशम 2 प्रकार का – 1. कर्मरूप… सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि दोनों के होता है। 2. भावरूप… सम्यग्दृष्टि के ही, सम्यग्दर्शन होने तथा बनाये रखने के

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कषाय / पाप / व्रत

कषाय कारण हैं, पाप कार्य। पाप को कम/ समाप्त करने के लिये व्रत। व्रतों (देशव्रत) को द्रढ़ करने के लिये गुणव्रत, प्रगति के लिये शिक्षाव्रत।

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सल्लेखना

सल्लेखना करने वाले के साथ अधिक से अधिक ४८ मुनि रहते हैं। इनके कार्य हैं – 4 – सहारा देने के लिये, 4 – धर्मोपदेश

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प्रभाव

अनंतशक्ति वाले हमारे screw tight नहीं कर पा रहे जबकि छोटा सा मैकेनिक tight कर लेता है, ऐसा क्यों ? निमित्त नैमित्तिक सम्बन्धों को जानकर

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सच्चा

सिर्फ 3 के आगे “सच्चा” शब्द लगता है – सच्चे देव, शास्त्र, गुरु। यानि इन तीन के अलावा बाकि सब झूठे/ भ्रम ! चिंतन

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अलौकिक ज्ञान

जो ज्ञान सामान्य लोगों को नहीं दिया जाता/ वह ज्ञान जो लौकिकता से ऊपर उठा हुआ जैसे जीवकांड का ज्ञान। पर उसे पारलौकिक (Other Worldly)

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स्वभाव

संसार में अलग-अलग स्वभाव की वस्तुएँ हैं। वे स्वभाव नहीं छोड़तीं। हाँ, निमित्त पाकर कुछ समय के लिये विभाव रूप परिणमन कर लेती हैं, जैसे

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उपादान / पुण्य

समयसार जी में 3 गाथाओं में सोना बनाने की विधि बतायी है, उपादान का महत्व बताने के लिए। अंत में कह दिया… यदि पुण्य हो

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मंगल आशीष

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