Category: पहला कदम
तांडव-नृत्य
भगवान के जन्मोत्सव में इन्द्र के द्वारा तांडवनृत्य विकराल नहीं होता बल्कि देखने वालों का रोम-रोम नृत्य करने लगता है, इस अपेक्षा से तांडव कहा
आत्मा अचेतन !
अस्तित्व, वस्तुत्व आदि गुणों की अपेक्षा आत्मा अचेतन है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (स्वरूप सम्बोधन पंचविशंति – गाथा 3 – अकलंकदेव)
प्रत्यक्ष / परोक्ष
प्रत्यक्ष से देखे/ सुने का वर्णन परोक्ष से ही सम्भव होता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
धार्मिक क्रियायें
आत्मा में डूबना, जैसे पक्षी का आसमान में बिना पंख चलाये आनंद लेना। धार्मिक क्रियायें पंख चला कर फिर आत्मा में पहुँच जाना/ नीचे गिरने
मोक्षमार्ग
1. संसार से डरना, मन की फितूरी संयमियों की संगति से दूर हो जाती है। 2. आयतन में रहना/ पचना/ रमना, अनायतन से बचना। तब
मन से कर्म-बंध
मन से कर्म-बंध सबसे ज्यादा होता है, क्योंकि मन की यात्रा बहुत ज्यादा होती है यानि मनोयोग सबसे ज्यादा हुआ तो कर्म-बंध भी सबसे ज्यादा
गतियाँ / कषाय
नरक गति में जन्मे जीव को प्रथम समय में क्रोध/ बहुलता भी क्रोध की/ संस्कार भी लम्बे समय तक चलता है। ऐसे ही अन्य गतियों
स्त्री को मायाचारी !
फूल की सुरक्षा के लिये कांटे दिये। यदि स्त्री को मायाचारी स्वभाव न मिला होता तो वह जी नहीं पाती। मुनि श्री सुधासागर जी
क्रोध
क्रोध के 4 प्रकार(शक्ति की अपेक्षा)…. 1. तीव्रतर…पत्थर की रेखा, नरक गति/आयु, इन पर उपदेश काम नहीं करते। 2. तीव्र….पृथ्वी की रेखा, तिर्यंच आयु। 3.
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