Category: पहला कदम

मिथ्यात्व / मोह

भगवान की माँ भी भगवान को दीक्षा लेने से रोकती है, पर यह मिथ्यात्व नहीं ? क्योंकि वे इस मार्ग को गलत नहीं कह रहीं,

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जन्म की पीड़ा

नियति ने मनुष्य/तिर्यंच को गर्भ/जन्म में बहुत पीड़ा क्यों दी ? देवों और भोगभूमिज को तो नहीं होती ? क्योंकि उनको तो जीवन भर दु:ख

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परमात्मा

परमात्मा के 2 भेद- 1. कार्य-परमात्मा – सिद्ध 2. कारण-परमात्मा – अनेक भेद – अरहंत, मुनि, देशव्रती – चलने के साहस की अपेक्षा, अविरत सम्यग्दृष्टि

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स्वयंभूरमण

इस द्वीप (समुद्र की तरफ वाले आधे भाग) तथा समुद्र में कर्म-भूमि रहती है। समुद्र में जलचर जीव भी होते हैं। अढ़ाई द्वीप तथा स्वयंभूरमण

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जैन दर्शन

जैन दर्शन संसार मिटाने के लिये नहीं, चलाने के लिये है। हर उस क्रिया करने को बोला – जो स्व-पर हितकारी हो, सिर्फ एक के

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वैयावृत्त्य

वैयावृत्त्य तीन प्रकार से की जा सकती है – 1. मानसिक – मन की, सबसे महत्त्वपूर्ण सूत्र है। 2. वाचनिक – नम्रतापूर्ण और प्रियवचनों से

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देवों के उपद्रव

बड़े-बड़े देवों के पास तो बड़ी-बड़ी शक्त्तियां होती हैं, वे उपद्रव क्यों नहीं करते, छोटे-छोटे देव ही उपद्रव/उपसर्ग करते देखे जाते हैं ? 1. बड़े

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करणानुयोग

करणानुयोग से… 1. ज्ञान का विस्तार होता है 2. केवलज्ञान पर विश्वास 3. रागद्वेष कम होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी 4. चंचल मन को

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संवेग / वैराग्य

संवेग/वैराग्य वाले की स्मरण शक्ति तेज होती है, उसे सब पुराना दिखता है/पुराने failure याद रहते हैं। (भगवान की वाणी पर विश्वास पक्का होता है)

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बोधी-दुर्लभ भावना

बोधी-दुर्लभ भावना… सम्यग्दर्शन प्राप्त करना दुर्लभ है। सही, पर उस दुर्लभ को प्राप्त करने के लिये ही तो इतने दुर्लभ साधन मिले हैं – दुर्लभ

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मंगल आशीष

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