Category: पहला कदम
ज़ुम्मेदारी
गाली सामने वाले ने दी, नरक द्वीपायन मुनि गये। कारण ? सामने वाले ने गुस्सा कहाँ किया था ! गाली तो पौदगलिक थी, मुनिराज ने
भेद / अभेद
भेद से संसार चलता है/ धर्म की शुरुवात भी भेद से, पर पूर्णता अभेद से जैसे वस्त्र बनाने से पहले उसके टुकड़े करने पड़ते हैं
मन
औकात/महत्व मूल्य से आंका जाता है – सोना व पीतल दोनों पीले, पर सोना तिजोरी में, पीतल का पीकदान। मन का मूल्यांकन करें – सम्यग्दर्शन
ग्रंथ
मूल ग्रंथकर्ता – तीर्थंकर(गंगा, वीर हिमाचल से निकसी)। उत्तर ग्रंथकर्ता – गणधर/श्रुतकेवली। उत्तरोत्तर ग्रंथकर्ता – आचार्यजन। गंगा गणधर के कुंड में गिरी, आज बूंद के
समझौता
10 जनवरी’80 में 4 दीक्षायें होनी थीं, सो 4 पीछियों का इंतज़ाम किया गया। 5वें सुधासागर जी आ गये तो आचार्यश्री ने 4 की 5
भाग्य / पुरुषार्थ
शकुनी जुए के भाग्य भरोसे जीवन चलाना चाह रहा था, हश्र ! मैना सुंदरी ने सिर्फ पूजा/विधान ही नहीं, आठ दिनों तक दानादि करके पुण्य/दुआयें
रस-त्याग
दूध, दही, छाछ, घी का अलग-अलग स्वभाव/तासीर होती है । दही का त्यागी छाछ ले सकता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मोक्ष
योगियों ने मोक्ष का स्वरूप कैसे जाना? संसार की परम्परा के विपरीत: मोक्ष। संसार है, तो उसका विपरीत भी होगा; जैसे दिन है, तो रात
कर्मबंध
कर्मबंध से बचने के लिये बहुत सावधान रहना होता है – किसको देख रहे हो ? क्यों देख रहे हो ?? हिंसाकृतों को/परिग्रह को देखने
श्रमण
श्रमण… शरीर की अपेक्षा वस्तु हैं, श्रमणता की अपेक्षा तत्त्व, जीव की अपेक्षा पदार्थ। कुछ श्रमण इतने ऊँचे उठ जाते हैं कि श्रमण-संस्कृति का निर्माण
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