Category: पहला कदम
दर्शन / ज्ञान का क्रम
सबसे पहले दर्शन, फिर ज्ञान (मिथ्या); जो बताएगा – सच्चे देव, गुरु, शास्त्र तथा सच्ची श्रद्धा क्या होती है और इसके जानने/मानने से ही सम्यग्दर्शन
समानता
जब मेरा अस्तित्व है, तो सामने वाले का नहीं होगा क्या ! दोनों के आत्मप्रदेश असंख्यात-असंख्यात, जब से मैं, तब से वह; यह है अस्तित्व-गुणों
सम्बंध
1-1 = 0, 1+1 = 2 आदि Values “1” से थोड़ा कम/ज्यादा हो जातीं हैं। लेकिन “1” अंक यदि अपनी स्वतंत्रता बनाए रखें/ आपस में
सम्बंध
सम्बंध तीन प्रकार के – 1. संयोग 2. संश्लेष 3. तादात्म्य पहले दो बेईमान हो सकते हैं पर तादात्म्य सम्बंध नहीं। मैं और आत्मा…. पर्यायवाची/
लब्धि
पहले क्षयोपशम-लब्धि, इसमें अपनी कमजोरियों/पाप की लिस्ट बनाना । उस लिस्ट को लेकर गुरु के पास जाओगे तब वे देशना देंगे । वह देशना शिष्य
लब्धि
अंतराय कर्म के क्षयोपशम से क्षयोपशम-लब्धि प्राप्त होती है, क्षय से क्षायिक-लब्धि । पांच लब्धियों(क्षयोपशम, विशुद्ध, देशना, प्रायोग्य, करण) की प्राप्त होने पर सम्यग्दर्शन होता
ज्ञान
केवल-ज्ञान त्रिकाली है, पर्याय को बिना उसके पास जाये जानता है, ढकी को बिना ढके देखता है। मति/श्रुत-ज्ञान सिर्फ वर्तमान को जानता है, उसी में
जड़ / चेतन
भाव-कर्म जड़ हैं पर वे चेतन को प्रभावित/आकर्षित कर लेते हैं। चेतन प्रभावित हो या ना हो/कम आकर्षित हो या ज्यादा, यह चेतन का पुरुषार्थ/स्वभाव
भगवान
भगवान से भक्तों की उम्मीदें 3 प्रकार की होती हैं— 1. ऐसा भगवान जो हमारे मार्ग को शूल रहित कर दे – प्राय: भक्त ऐसा
रीत-रिवाज
किसी के मरण के बाद रिश्तेदार पहले त्यौहार पर मिठाई आदि लेकर आते थे । कारण ? 6 माह के अंदर-अंदर, मनमुटावों को मिटाना, ताकि
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