Category: वचनामृत – अन्य
पुण्यात्मा
पुण्यात्मा की पूजादि इसलिये क्योंकि साधारणजन ऐसे गुणों को पा नहीं पाते । उनके पुण्य साधारणजन की रक्षा करते हैं जैसे राजा करते थे ।
नियति
बचपन में नियति वह सब देती है, जिसकी ज़रूरत होती है। वृद्धावस्था में वह सब वापस लेती जाती है, जिस-जिस की ज़रूरत नहीं होती –
ऊबना
रोज़ वही पूजा पाठ से कुछ लोगों को ऊब आने लगती है। वही लोग पाप भी रोज़ करते हैं, उससे ऊब क्यों नहीं होती ?
वास्तविक स्वरूप
संसार शोकमय, काया रोगमय, जीवन भोगमय, सम्बंध वियोगमय; बस, धर्म/सत्संग ही उपयोगमय होता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भक्त
गुटका आदि व्यसनों से भक्त को ज्यादा पाप लगता है क्योंकि उनको तो प्रशस्त-पुण्य मिला था गुरु/भगवान की सेवा करने का, उस पुण्य को उन्होंने
उपयोगिता / तप
सोने से बेहतर है, गहना बनना। पर उसमें तो अशुद्धि मिलाई जाती है ? पर थोड़ी अशुद्धि के साथ उसकी उपयोगिता भी तो बढ़ जाती
खेल
खेल में हार न हो, सिर्फ जीत ही जीत हो तो खेल का आनंद क्या! जीवन का आनंद लेना है तो हार को भी स्वीकारना
इच्छायें
जीवन एक ऐसा सफ़र है कि मंज़िल पर पहुँचा तो मंज़िल ही बढ़ा दी – यही पतन का कारण है। क्या करें ? उन इच्छाओं
मूर्ति / चरण
मूर्ति से वीतरागता मिलती है और चरण से शक्त्ति (निर्वाण/मोक्ष जाने के प्रतीक)| मुनि श्री सुधासागर जी
मंदिर में रोना
आज संकट(कौरोना)के समय में मंदिरों के दरवाजे क्यों बंद हैं ? क्योंकि मंदिरों में रोने वाले उन्हें अपवित्र कर रहे थे। ऐसे ही सूतक के
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