Category: वचनामृत – अन्य
धर्मी / आचरणवान
ज़रूरी नहीं कि धर्मी आचरणवान हो ही। हरी बत्ती पर गाड़ी चलाए, धर्मी; लाल पर रोके, आचरणवान। आप धर्मी हों, तो पाप करना छोड़ दें;
पिता की सम्पत्ति
बच्चों को पिता की सम्पत्ति पर दृष्टि नहीं रखनी चाहिये। वे दें, तो सहेजा जैसी मात्रा में लें, जिससे आप अपना ख़ुद का दही जमा
स्व-पर हित
पड़ौसी के घर की आग बुझाने को महत्त्व दें। इस परोपकार से अपना भी भला – अपना घर बचेगा। दो रोटी में से आधी रोटी
नियति / पुरुषार्थ
फ़ेल होने को (घटना घटने के बाद) नियति मानना, वरना अवसाद में घिर जाओगे। पास होने को भी भाग्य मानना, वरना घमंड आ जायेगा। पर
भाग्य / पुरुषार्थ
“समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता” यह नीति है, सिद्धांत नहीं क्योंकि सिद्धांत तो सब पर लागू होता है,
विकार
महर्षि पराशर नाव से नदी पार कर रहे थे। सुन्दर युवती अकेले नाव खे रही थी। महर्षि के मन में विकार आ गया, युवती से
विभाव
लम्बी बीमारी/दवाईयों का लम्बा प्रयोग भी आदत बन जाती है। ऐसे ही लम्बे समय तक विभाव में रहने से हम उसे अपना स्वभाव मानने लगते
प्रकृति
सुंदरता प्रकृति की देन है, सूखे पत्ते तक को खाद बना देती है। उसको उजाड़ता मनुष्य ही है, देवता उजाड़ते नहीं, नारकी उजाड़ सकते नहीं,
गुरु/भगवान की शक्त्ति
कौरवों के हारने का महत्त्वपूर्ण कारण – जो ब्रम्हास्त्र कर्ण ने मुख्य योद्धा अर्जुन के लिये रखा था, उसे घटोत्कच पर प्रयोग करने में बर्बाद
अज्ञान
बंद आँख में अंधेरा सुहाना लगने लगता है, आँख खुलने पर पता लगता है कि क्या-क्या खोया ! मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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