Category: वचनामृत – अन्य
कार्य / अकार्य
क्या करना ! रामायण से सीखें : भ्रातृ प्रेम; क्या नहीं करना ! महाभारत से सीखें : भ्रातृ द्वेष । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वैराग्य
दु:ख से ऊबकर लिया गया वैराग्य टिकता नहीं। (क्योंकि पुण्य आकर्षित करता रहता है-गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी) टिकाऊ वैराग्य लेना है/प्रगति करनी है तो
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ रूपी हनुमान ही, शांति रूपा सीता को आत्मा राम से मिला सकते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भाव-भंगिमा
भाव शब्दों के, भंगिमा शरीर की; दोनों एकरूप भी हो सकते हैं, भिन्न-भिन्न भी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
वैराग्य
वैराग्य में घर छोड़ा नहीं जाता। घर छूटता भी नहीं; अपने घर में आया जाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सृष्टि / पुरुषार्थ
सृष्टि अधूरा देती है; पुरुषार्थ से हमको पूर्ण करने को कहती है, जैसे… बीज दिया, फ़सल किसान उगाये; मिट्टी दी, घड़ा कुम्हार बनाये; इन्द्रियां दीं,
वैभव
वैभव हमेशा परिग्रह ही नहीं, अनुग्रह* भी है। *Grace मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मर्यादा
मनुष्य जागते में भी गिर जाते हैं; पक्षी सोते में भी नहीं। कारण ? पक्षी अपनी मर्यादा कभी नहीं छोड़ते; जबकि मनुष्य मर्यादा तोड़ने में
अनेकांत
सब सही कहना सही नहीं। समग्रता से, दूसरे के दृष्टिकोण से देखना अनेकांत है। गांधी जी ने कहा था, “मैं अपने दुश्मनों को भी अपना
एकत्व
आइने के सौ टुकड़े करके मैंने देखे हैं। एक में भी अकेला था, सौ में भी अकेला। मुनि श्री महासागर जी
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