Category: डायरी
बड़ा
अभिमान में-> मैं बड़ा – मैं बड़ा। मायाचारी में-> तू बड़ा – तू बड़ा। लक्ष्य……….-> बड़ा मानना। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (9 दिसम्बर)
अपरिग्रह
खाली कमरा बड़ा दिखने लगता है, किसी (वस्तु) से टकराव नहीं। कमरा, कमरा बन जाता है। ब्र. डॉ. नीलेश भैया
मोह/ अभिमान
प्रभु के रोज दर्शन करते हैं। उनसे जुड़ क्यों नहीं पाते जबकि संसारियों से तुरंत जुड़ जाते हैं। कारण ? मोह और अभिमान। मोह से
सुख
संसार में सुख बहुत हैं/ सहयोगी चीजें बहुत हैं, आपके सोकर उठने से पहले सूरज उठ आता है। संसार/ मार्गों को प्रकाशित कर देता है।
बालक / पालक
बालक अबोध होते हैं, उनमें स्वाभाविक दोष रहते हैं। पालक सबोध होते हैं, उनमें अस्वाभाविक दोष रहते हैं। बालकों की तीव्रतम कषाय (क्रोधादि) भी पालकों
विकास
गुण/ चारित्र का विकास बिल्ली की आवाज़ की तरह नहीं होना चाहिए… जो पहले तेज़ और बाद में मंद मंदतर होती चली जाती है। बल्कि
प्रकृति
प्रकृति हमारे शरीर की रक्षा करती है… वर्षाकाल में पित्त पैरों में आ जाता है, जल से रक्षा होती है। सर्दी में छाती में क्योंकि
गुरु
एक गुरु ने अपने शिष्य को लाठी चलाने की शिक्षा पूर्ण कर दी। शिष्य माहिर भी हो गया पर उसे गुमान आ गया कि वह
मैं क्या हूँ ?
अच्छा वक्त दुनियाँ को बताता है कि मैं क्या हूँ, बुरे वक्त में दुनियाँ बताती है कि मैं क्या हूँ। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी
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