Category: पहला कदम
अहिंसा
पक्की सड़क प्रासुक होती है, इस पर चलने में हिंसा नहीं। घास पर चलने से अनंत वनस्पति-कायिक(तथा घास के आश्रित त्रस) जीवों की हिंसा होती
स्थितिकरण
निश्चय में…. उन्मार्ग की ओर जाते हुये अपने मन को सन्मार्ग में स्थित करना स्थितिकरण है । व्यवहार में…. वात्सल्य के साथ टूटे-फूटे शब्द भी
मुनि / आचार्य
मुनियों के 28 मूलगुण, आचार्य इनको भी पालते हैं तथा अपने अतिरिक्त गुण भी पालते हैं। जैसे मुनियों के लिये “तप” मूलगुणों में नहीं आते,
योनि
देव व नारकी की अचित्त, साधारण वनस्पति सचित्त (एक दूसरे के आश्रय से), बाकी के तीनों प्रकार की, मनुष्य में शुक्रादि अचित्त, माँ की योनि
मनुष्य और भगवान
मनुष्य अंदर के शत्रुओं (कर्मों) को शत्रु मानता नहीं, बाहर में शत्रु पैदा करके उनसे जूझना ही अपना धर्म मानता है। भगवान बाहर के शत्रुओं
अशुचि
हमारा शरीर इतना अशुचि है कि इसके सम्पर्क में सुगंधित वस्तु भी दुर्गंधि का निमित्त (थोड़े समय में ही) बन जाती है । जबकि भगवान
वैयावृत्त्य
मन मिलाने/वात्सल्य पाने का एक ही उपाय है -वैयावृत्त्य । कितना भी कोई सुना दे, लेकिन वैयावृत्ति ना छोड़ें, इसको कहते हैं – कर्त्तव्यनिष्ठता ।
वैयावृत्त्य
वैयावृत्त्य करने से सम्यग्दर्शन प्रौढ़ होता है, स्थितिकरण, उपगूहन तथा वात्सल्य भी पुष्ट होता है । ये तो सबसे बड़ा काम है, अन्य सारे काम
तीर्थंकर / शलाका पुरुष
नरक से निकलकर तीर्थंकर तो बनते हैं पर शलाका पुरुष नहीं बनते हैं। कारण? तीर्थंकरों का सातिशय पुण्य होता है जो ३-४ भवों तक बना
परिग्रह
शरीर भी परिग्रह है तभी तो (तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय-4/गाथा-21,22) देवों की समृद्धि ऊपर-ऊपर के स्वर्गों में अधिक-अधिक पर शरीरों की अवगाहना/ परिग्रह कम-कम होती जाती
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