Category: पहला कदम

Ego

Ego हमें Zero बना देती है। Ego को Zero करने का उपाय ? अर्हं योग। क्यों Zero हो सकता है ? “अर्हं” भगवान का नाम,

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क्षायिक स.द्रष्टि और आत्महत्या

क्षायिक सम्यग्दृष्टि आत्महत्या नहीं करते। पर मरण के अंतर्मुहूर्त पहले कर्म-विपाक से बुद्धि फिर जाती है → श्रेणिक का बेटा उसे बचाने आया, पर श्रेणिक

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सम्यग्दर्शन का निमित्त

1. स्थावर जीवों की संख्या → लोक प्रमाणादि में गुणा करके महाराशि बना कर उसमें से एक कम करते हैं। 2. सबसे ज्यादा वायुकायिक जीव,

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सत्य-योग

सत्य-मन = सत्य-भावरूप मन। सत्य-भाव होगा सत्य-पदार्थ को जानने से, उसके चिंतन से। जब सत्य-मन होगा, उसी से सत्य-योग होगा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा

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भावकर्म

भावकर्म = रागद्वेष आदि। “आदि” में योग भी लेना क्योंकि योग भी रागद्वेष की तरह कर्मबंध में कारण है। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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योग

योग भीतरी वस्तु है पर होता है बाह्य निमित्तों से। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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वर्गणायें

सत्य/असत्य, उभय/अनुभय वर्गणायें अलग-अलग होतीं हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड–गाथा – 217)

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शुक्लध्यान

दूसरे शुक्लध्यान से १२वें गुणस्थान(के अंत में) औदारिक शरीर का अभाव तथा परम औदारिक शरीर का प्रादुर्भाव होता है। इसके अंतर्मुहूर्त काल के प्रत्येक समय

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सम्यग्दर्शन

सम्यग्दर्शन/ मिथ्यादर्शन, भव्यता/ अभव्यता हमारे क्षयोपशमिक-ज्ञान का विषय नहीं हैं। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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अनुभय-वचन

अनुभय-वचन विकलेंद्रियों के तथा संज्ञी के आमंत्रणादि रूप में होते हैं। विकलेंद्रियों के वचन तो हैं पर हमें समझ नहीं आते/ अर्थक्रिया पकड़ में नहीं

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मंगल आशीष

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