Category: पहला कदम
उपशमन
उपशमन दो प्रकार का → 1. प्रशस्त…. करण-परिणामों से पूरा दबा दिया जाय(पूरे समय यानि अंतर्मुहूर्त तक)। 2. अप्रशस्त… बिना करण-परिणाम के जैसे अनंतानुबंधी का
सम्यक्-मिथ्यात्व / सम्यक्-प्रकृति
सम्यक्-मिथ्यात्व/ सम्यक्-प्रकृति का सत्त्व पहले से होना चाहिये (तभी तीसरे गुणस्थान में उदय होगा)। यह सम्यक्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि में भी हो सकता है। सम्यक्-मिथ्यात्व तथा
कर्ता
“जो-जो देखी वीतराग ने सो-सो होती वीरा रे” इससे तो भगवान कर्ता हो जायेंगे जैसा अन्य दर्शन मानते हैं → “होवे वही जो राम रच
गति-मार्गणा
1. गति-नामकर्म के उदय से उत्पन्न पर्याय को “गति” कहते हैं। 2. जिससे जीव जानने(ज्ञान) में आये/ जाना जाता है। 3. गति ही चारों गतियों
मनुष्य संख्या
अधिक से अधिक मनुष्य संख्या …. 29 अंक प्रमाण, (792281625142, 643, 37, 59, 354, 39, 50, 336) पर्याप्त मनुष्यों के 3/4 मानुषी (द्रव्य से) (भाव
सुभग / शुभ / यश
नामकर्म…. सुभग (जिसे देखते ही वात्सल्य उत्पन्न हो) जीव विपाकी। शुभ(सुन्दर शरीर) पुद्गल विपाकी। यश (जिस कर्म के उदय से पवित्र गुणों की ख्याति होती
रत्नत्रय
ज्ञान को बीच की ऊंगली, श्रद्धा तर्जनी, चारित्र अनामिका से दर्शाया जाता है। श्रद्धा तथा चारित्र के बिना ज्ञान उपयोगी नहीं। गुरुवर मुनि श्री क्षमा
हास्य
हास्य में चारों categories → 1. हास्य में अनंतानुबंधी – किसी की ऐसी हंसी उडाना जिसमें उसे बहुत कष्ट हो रहा हो। 2. हास्य में
क्षायिक/क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन
क्षयोपशमिक सम्यग्दर्शन दूध से बना मक्खन है – सदोष/ अस्थाई। क्षायिक सम्यग्दर्शन घी है, एक बार तपा लिया तो स्थाई हो गया। (डॉ.एस.एम.जैन)
मोहनीय
चारित्र और दर्शन मोहनीय आपस में (साता/ असाता की तरह) संक्रमित तो नहीं होते। पर एक दूसरे को प्रभावित ज़रूर करते हैं। मुनि श्री सुधासागर
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