Category: पहला कदम
सोलहकारण
सोलहकारण भावनाओं में 10 भावनायें + 4 भक्तियाँ + 2 शक्तियां हैं। इससे पता लगता है कि भावनाओं का महत्त्व सबसे ज्यादा फिर भक्तियों का
श्रेणी
जग श्रेणी = 7 राजू प्रमाण; (जग श्रेणी) वर्ग 2 = जगत प्रतर। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अंगुल
प्रतरांगुल = सूच्यंगुल का वर्ग। घनांगुल = सूच्यंगुल का घन/Cube. मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सुखी / दु:खी
व्यवहार से एक जीव दूसरे जीव को सुखी/ दु:खी कर सकता है, उससे कर्मबंध भी होगा। निश्चय से सुखी/ दु:खी नहीं कर सकता, ना ही
समवसरण में 100 इंद्र
शेर तो बहुत सारे, देवों में इंद्र असंख्यात तो कौन सा शेर/ इंद्र लेना ? 1 समुदाय से एक-एक लेना। मुनि श्री सुधासागर जी
देवों की संख्या
सबसे ज्यादा ज्योतिष्क देव, उनसे कम व्यंतर, फिर भवनवासी तथा सबसे कम सौधर्म/ ईशान। (जीवकांड-गाथा 161) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मति/श्रुत ज्ञान
मतिज्ञान जानने के लिये, श्रुतज्ञान प्रयोग करने के लिये होता है। कमलाबाई जी-(श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक)
कुलकर
कुलकर यानि मनु, इनसे ही मानव नाम पड़ा। मनु रक्षा का भाव रखते हैं, ऐसे ही मानव को “परस्परोपग्रहो-जीवानाम्” का भाव रखना चाहिये। कुलकर 14
मनुष्यनी
भाव-वेद की अपेक्षा जिनमें स्त्री-वेद पाया जाता है, चाहे द्रव्य से मनुष्य। इनमें सारी ऋद्धियाँ नहीं होती/ कुछ संयम उत्पन्न नहीं होते। मुनि श्री प्रणम्यसागर
पर्याप्ति
पर्याप्ति पूर्ण होने पर सिर्फ योग्यता आती है या कुछ और भी ? हमारी जिज्ञासा योग्यता, शक्ति की पूर्णता तथा वर्गणायें ग्रहण कर रचना भी
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