Category: पहला कदम
अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग
केवलज्ञान में सब पदार्थ आ जाते हैं, इसलिये ज्ञान ही श्रेष्ठ है। ज्ञान के आश्रय से कलुषता/ कषाय कम करने वाला अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी होता है।
दिव्यध्वनि
दिव्यध्वनि को अपने क्षयोपशम के अनुसार जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट समझते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितना समझे बल्कि यह है कि क्या समझ रहे हैं
स्तबक–संक्रमण
कर्म के उदय में आने के एक समय पहले जो संक्रमण हो, उसे स्तबक–संक्रमण कहते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
14 पूर्व
14 पूर्व बहुत बृहत ज्ञान है, इसलिये अलग से Mention किया गया (12वें अंग के भेद) सामान्य से सबको कहा जाता है, विशेष को अलग
आरम्भ
8 वीं प्रतिमाधारी (आरम्भ त्याग) 5 आरम्भ नहीं करता है – 1. चूल्हा → आहार देने के लिये भी नहीं 2. चक्की → आहार देने
मतिज्ञान
क्या मतिज्ञान अवग्रह से धारणा तक क्रम से ही जायेगा ? निधि-मुम्बई क्रम से भी जायेगा, अवग्रह पर ही रुक सकता है या सीधा अवग्रह
राग
राग को तो बुरा कहा, फिर धर्मानुराग अच्छा कैसे ? धर्म को बहुमान देने/ अपने में धारण करने के लिये धर्म से और धर्म धारण
उपसर्ग-केवली
उपसर्ग-केवली के अंगभंग होने के बाद अंग बनना तर्कसंगत नहीं है। ये वज्रवृषभ नाराच संहनन वाले ही होते हैं, उनके अंगभंग होते भी नहीं। मुनि
मिथ्यात्व पर श्रद्धान
यदि यह श्रद्धान पक्का हो जाय कि संसार का कारण मिथ्यात्व है तो यह सम्यग्दर्शन उत्पन्न करने में निमित्त बन सकता है। आचार्य श्री विद्यासागर
क्षायिक सम्यग्दृष्टि
IAS परीक्षा में ज्यादातर लोग तीसरी या चौथी बार में निकल जाते हैं। ऐसे ही क्षायिक सम्यग्दृष्टि 3 या 4 भव में संसार से निकल
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